
तुलसी विवाह, हिंदू धर्म में एक पवित्र और विशेष पर्व है, जो धार्मिक उत्साह, आस्था और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार माह के विश्राम के बाद पुनः जागते हैं और धरती पर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। तुलसी विवाह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे घर में सुख-शांति, सौभाग्य और समृद्धि लाने वाला भी माना जाता है। इस लेख में हम तुलसी विवाह के पौराणिक महत्व, इसकी विधि और लाभ के बारे में विस्तार से जानेंगे।
तुलसी विवाह का पौराणिक महत्व
तुलसी विवाह का इतिहास हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। कथा के अनुसार, तुलसी माता असुर कुल में जन्मी एक कन्या थीं, जिनका नाम वृंदा था। वृंदा का विवाह दैत्यराज जलंधर से हुआ था। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनकी भक्ति के प्रभाव से जलंधर को अद्वितीय शक्ति प्राप्त हुई, जिससे देवता भी जलंधर को हराने में असमर्थ रहे। तब भगवान विष्णु ने छल से वृंदा की भक्ति को भंग किया, जिससे जलंधर की मृत्यु हो गई। इस घटना से वृंदा को विष्णु जी पर क्रोध आया और उन्होंने उन्हें पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। बाद में, भगवान विष्णु ने वृंदा के प्रति अपनी करुणा व्यक्त करते हुए उन्हें तुलसी के पौधे का रूप दे दिया और कहा कि वह हर वर्ष तुलसी विवाह के रूप में उनका स्वागत करेंगे।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी विवाह का आयोजन मुख्य रूप से घर में ही किया जाता है। इसे तुलसी चौरा पर या घर के मंदिर में आयोजित किया जाता है। यहाँ हम तुलसी विवाह की सरल विधि बता रहे हैं:
- तुलसी चौरा का सजाना: सबसे पहले तुलसी के पौधे के चारों ओर रंगोली सजाएँ और चौरा को अच्छे से धोकर स्वच्छ करें। तुलसी चौरा को सजाने के लिए रंगीन कपड़े और फूलों का उपयोग कर सकते हैं।
- तुलसी माता का श्रृंगार: तुलसी के पौधे को साड़ी, चुनरी, और आभूषणों से सजाएँ। तुलसी माता को सिंदूर, चूड़ियां और बिंदी भी लगाई जाती है।
- भगवान शालिग्राम की स्थापना: भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप को तुलसी माता के समीप स्थापित करें। तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने के लिए शालिग्राम को भी वस्त्र और फूलों से सजाया जाता है।
- मंत्रोच्चार और पूजन: पंडित जी द्वारा या स्वयं भी शास्त्रोक्त विधि से तुलसी माता का पूजन कर सकते हैं। मंत्रों का उच्चारण करते हुए तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न करें।
- मिष्ठान्न और भोग: विवाह संपन्न होने के बाद तुलसी माता को मिष्ठान्न, फल और पंचामृत का भोग लगाएं। फिर प्रसाद के रूप में इसे सभी में वितरित करें।
- आरती और प्रसाद वितरण: अंत में तुलसी माता की आरती करें और घर के सभी सदस्यों में प्रसाद बांटें।
तुलसी विवाह के लाभ
तुलसी विवाह का आयोजन करने से कई प्रकार के लाभ होते हैं, जैसे:
- सुख-शांति और समृद्धि: तुलसी विवाह से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसे करने से गृह क्लेश दूर होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- संतान प्राप्ति: जिन दंपतियों को संतान सुख की इच्छा होती है, उनके लिए तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। मान्यता है कि तुलसी विवाह से संतान प्राप्ति के योग प्रबल होते हैं।
- विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं: तुलसी विवाह का आयोजन उन युवतियों के लिए भी लाभदायक माना जाता है जिनके विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो। इससे विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं।
- धार्मिक पुण्य का अर्जन: तुलसी विवाह एक पवित्र कार्य माना जाता है और इसके आयोजन से व्यक्ति को धार्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह का आयोजन भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक अहम हिस्सा है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि इसमें व्यक्ति को आत्मिक शांति, सुख-समृद्धि और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। तुलसी विवाह के आयोजन से वातावरण में शुद्धता आती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हर वर्ष कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन अवश्य करें और भगवान विष्णु और माता तुलसी की कृपा प्राप्त करें।
तुलसी विवाह से जुड़े अनमोल फायदे और धार्मिक महत्त्व जानकर इसे अपने जीवन में अपनाएं और घर में खुशहाली का संचार करें।